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Showing posts from September, 2020

क़ायदा मेरे शहर का

चंद लफ़्ज़ों और रिपोर्टों में कैसे बयां करूँ, क़ायदा मेरे शहर का? धान के हरे खेतों का, आम के बगीचों का, मंदिर के भव्य स्तम्भ का, अधिकारियों के दंभ का; ज़मीन के ऊँचे भाव का, राजनीतिक दबाव का, साम्भर के तीखे स्वाद का, टालीवूड डायलाग्स का; कभी आओ इस ओर, तब चखाएँगे तुम्हें ज़ायक़ा मेरे शहर का। चंद लफ़्ज़ों और तस्वीरों में कैसे बया करूँ, क़ायदा मेरे शहर का? फूलों की चटक का, सूरज की चमक का, वादियों की ठंडक का, पंछियों की चहक़ का; ठंड में गरम चाय का, धुआँ बनती सांस का, दोस्तों संग उपहास का, हर्ष और उल्लास का; कभी आओ इस ओर, तब चखाएँगे तुम्हें ज़ायक़ा मेरे शहर का। चंद लफ़्ज़ों और कहानियों में कैसे बया करूँ क़ायदा मेरे शहर का? करोड़ों सपनों का, लाखों नौकरियों का, हज़ारों किताबों का, सैंकड़ों कोचिंगों का; भागती मेट्रो का, भागते लोगों का, मीडिया के नहलों का, नेताओं के दहलों का; कभी आओ इसे ओर, तब चखाएँगे तुम्हें, ज़ायक़ा मेरे शहर का। चंद लफ़्ज़ों और यादों में कैसे समेटूँ, क़ायदा मेरे शहर का? माँ की दाल-रोटी का, पापा की ख़ास बेटी का, कपास की गठान का, अपने पहले मकान का, कुंदा की लहरों का, नवग्रह के म